Guru Ravidas Jayanti in Hindi: हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ पूर्णिमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है। इस गुरु रविदास जयंती के अवसर पर पीएम मोदी ने वाराणसी में स्थिति सीर गोवर्धन में संत रविदास संग्रहालय की आधारशिला रखी है। इस मौके पर PM Modi ने रविदास जी की शिक्षाओं को जीवन में उतारने का संदेश दिया। इस बार संत रविदास जी की जयंती 24 फरवरी यानी आज मनाई जा रही है। वाराणसी के पास एक गांव में जन्में संत रविदास बेहद धार्मिक स्वभाव के थे।
गुरु रविदास जी के जयंती के मौके पर शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं और भजन कीर्तन कर उनको याद किया जाता है। उन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जाना जाता है। संत रविदास ने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी और इसी तरह से वे भक्ति के मार्ग पर चलकर संत रविदास कहलाए। तो आइये गुरु रविदास जी के उन विचारों के बारे में जानते है जिनसे आप प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सरल और सफल बना सकते हैं।
गुरु रविदास जी के इतिहास
आपको बता दें कि, गुरु रविदास जी संत के साथ-साथ महान कवि, दार्शनिक और समाज सुधारक थे। संत रविदास का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी क्षेत्र में माघ पूर्णिमा को 1377 में हुआ था। इसलिए हर साल माघ पूर्णिमा के दिन ही गुरु रविदास जी की जयंती मनाई जाती है। लेकिन इनके जन्म को लेकर विद्वानों के बीच अलग-अलग मत हैं। इनकी माता का नाम कर्मा देवी और पिताजी का नाम संतोष दास था।
संत रविदास का जन्म एक मोची परिवार में हुआ था और इनके पिता जूते बनाने का काम किया करते थे। रविदास जी बचपन से बहादुर और ईश्वर के भक्त थे। पंडित शारदानंद गुरु से इन्होंने शिक्षा प्राप्त की, जैसे-जैसे रविदास जी की उम्र बढ़ने लगी भक्ति के प्रति इनकी रुचि भी बढ़ गई। आजीविका के लिए रविदास जी ने पैतृक काम को करते हुए भगवान की भक्ति में भी लीन रहे। चर्मकार कुल के होने के कारण वे जूते बनाया करते थे और अपने पैतृक कार्य में उन्हें आनंद भी मिलता था। वे अपना काम ईमानदारी, परिश्रम और पूरे लगन से करते थे। साथ ही लोगों को धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा भी दिया करते थे।
जानिए गुरु रविदास जी के अनमोल दोहे के बारे में !
पहला
जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात, रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात !
इस दोहे में संत रविदास ने जाति से समाज को होने वाली हानि के बारे में बताया है। इस दोहे का अर्थ है कि जिस तरह केले के तने को छिलते रहने से उसके नीचे से पत्ते ही पत्ते निकलते रहते हैं और अंत में पूरा पेड़ ही खत्म हो जाता है। कुछ इसी तरह लोगों को भी जातियों में बांट दिया गया है। अंत में लोग मर जाते हैं, खत्म हो जाते हैं लेकिन उनकी जातियां खत्म नहीं होती।
दूसरा
रैदास कनक और कंगन माहि जिमि अंतर कछु नाहिं। तैसे ही अंतर नहीं, हिंदूअन तुरकन माहि !
रविदास जी कहते हैं कि जिस तरह सोना जब कंगन बन जाता है, तो दोनों में अंतर नहीं रहता। उसी तरह हिंदू और मुस्लिम में भी कोई अंतर नहीं है।
तीसरा
करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास !
कर्मों का महत्व बताते हुए संत रविदास जी कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा अपने कर्मों पर भरोसा रखना चाहिए। इन कर्मों के अनुसार मिलने वाले फल की आशा उसे कभी नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि हमारा धर्म केवल कर्म करते जाना है। यही हमारा सौभाग्य है।
चौथा
कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै !
इस दोहे का अर्थ है कि भाग्यशाली लोगों को ही ईश्वर की भक्ति प्राप्त होती है इसलिए अंहकार को छोड़ने से ही आपको सफलता मिल सकती है। जैसे, हाथी अपने विशालकाय होने का कितना ही अभिमान कर ले, लेकिन वो चीनी के छोटे दानों को उठा नहीं सकता, जबकि छोटी-सी चींटी उन चीनी के दानों को आसानी से उठा लेती है।
संत रविदास जी से सीखें जीवन जीने का तरीका !
- भगवान उस हृदय में निवास करते हैं जिसके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है।
- तेज हवा के कारण सागर की लहरें उठती हैं और सागर में ही समा जाती हैं, उनका अलग कोई अस्तित्व नहीं होता, ऐसे ही परमात्मा के बिना मानव का कोई अस्तित्व नहीं होता।
- ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन।, पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।
- कर्म करना हमारा धर्म है, फल पाना हमारा सौभाग्य है, सब चंगा तो कठौती में गंगा
यह भी पढ़ें |
Magh Purnima 2024: आज है माघ पूर्णिमा, यंहा जाने पूजा करने कि सही विधि, क्या है इस दिन का महत्व !