By: Resham Singh
हैलोवीन उत्सव भारत में भी बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। लोग आमतौर पर डरावनी पोशाकें पहनते हैं। इसमें भूत, चुड़ैलों और अन्य प्राणियों का नाटक करते हैं।
हैलोवीन उत्सव में भूत, चुड़ैलों तो बनते ही है और इसमें चुड़ैलों जैसे आवाजे भी निकालते हैं। तथा यह बच्चों को टॉफी देते हैं और घर-घर जाकर टॉफी मांगते भी हैं।
हैलोवीन उत्सव की शुरुआत एक प्राचीन सेल्टिक उत्सव से हुई जो फसल के आखिरी दिन होता था। इस दिन भूत-प्रेतों और मृतकों को धरती पर चलना स्वीकार कराया जाता था।
हैलोवीन की उत्पत्ति,ऑल ऑनर्स ईव, जिसका अर्थ है कि "पवित्र शाम", "हैलोवीन" है, और इसका संबंध मध्यकालीन युग से है।
इसमें ईसाई उत्सव का पूर्ववर्ती जिसे हम वर्तमान में ऑल सेंट्स डे के रूप में देखते हैं, उस दिन को ऑल हैलोज़ ईव भी कहा जाता था।
हैलोवीन रीति-रिवाजों का सबसे पहला स्रोत समहेन का प्राचीन गेलिक उत्सव माना जाता है, जोकि हर साल 1 नवंबर को आयोजित किया जाता है।और यह एक रात पहले ही शुरू हो जाता है।
हेलोवीन का त्यौहार लगभग 2,000 साल पहले मनाया जाना शुरू हुआ। हैलोवीन को ज्यादातर पश्चिमी देशों में शहीदों, संतों और मरने वाले समर्पित भक्तों को याद करने के दिन के रूप में मनाया जाता है।
हैलोवीन मानने की शुरुआत फसल और त्यौहार वर्ष के एक ही समय में पड़ते थे, हैलोवीन पर कद्दू काटने की प्रथा की कल्पना की गई थी।
उत्तरी अमेरिका के अप्रवासियों ने हैलोवीन के लिए कद्दू काटना शुरू कर दिया लोग अपने घरों में विभिन्न डिज़ाइनों का उपयोग करते हैं उनमें बिजूका और मकई की भूसी भी शामिल करते है।