By: Resham Singh
शिव पुराण के अनुसार, एक बार सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी और विष्णुजी के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया।
इस विवाद के दौरान एक अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ और आकाशवाणी हुई कि जो भी इस स्तंभ के आदि और अंत को जान लेगा, वही ही श्रेष्ठ कहा जाएगा।
ब्रह्मा और जगत के पालनहार विष्णु, दोनों ने युगों तक इस स्तंभ के आदि और अंत को जानने की कोशिश की। लेकिन वे इसे नहीं जान सके।
तब भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने अपनी हार स्वीकार करते हुए अग्नि स्तंभ से रहस्य बताने की विनती की।
तब जाकर भगवान शिव ने कहा कि श्रेष्ठ तो आप दोनों ही हैं। लेकिन मैं आदि और अंत से परे हूं।
इसके बाद विष्णु भगवान और ब्रह्मा जी ने उस अग्नि स्तंभ की पूजा अर्चना की और वो स्तंभ एक दिव्य ज्योतिर्लिंग में बदल गया।
जिस दिन ये घटना घटी, उस दिन फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि थी। तब शिव ने कहा कि इस दिन जो भी व्यक्ति मेरा व्रत व पूजन करेगा।
उसके सभी कष्ट दूर होंगे और सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। तब से इस दिन को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाने लगा।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार कहा जाता है कि महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में संसार में प्रकट हुए थे।
ये 12 ज्योतिर्लिंग हैं- सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग से लेकर नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग हैं।