Ramayana Katha: जब हमारे प्रभु श्री राम 14 वर्ष का वनवास काट रहे थे, तभी आखिरी वर्ष में लंकापति रावण ने माता सीता का हरण करके ले गया था। इसके बाद सीता वियोग में हाल-बेहाल हुए प्रभु राम को पक्षीराज जटायु ने पूरी कथा सुनाई, तब वानरों के प्रमुखों को संसार की सभी दिशाओं में पता लगाने के लिए भेजा गया। लंका में सीता माता की खोज करने की बात भी आई क्योंकि जटायु के भाई सम्पाती से संकेत मिला था, कि समुद्र पार त्रिकूट पर्वत पर लंका है, जहां के एक बगीचे में सीता माँ बैठी हुई हैं।
अब सामने सबसे बड़ी समस्या थी, कि सौ योजन लंबे समुद्र को पार कैसे किया जाए। सभी वानरों ने संदेह व्यक्त किया तो अंगद ने कहा मैं चला तो जाऊंगा, लेकिन लौटने में असमंजस है। इस पर जाम्बवान ने हनुमान जी को उनका बल याद दिलाया और कहा कि संसार में कोई भी कार्य ऐसा नहीं है। जो तुम न कर सके. और तब पूरी वानर सेना ने मिलकर उस लंबे समुन्द्र के ऊपर पत्थर में प्रभु श्री राम के नाम का लिखवत लिखकर समुन्द्र में फेखा और लंका जाने-आने हेतु पल का उद्घाटन कर दिया। तो आइये माँ सरस्वती और पूरी रामायण कथा के बारे में जानते हैं।
रावण ने दिया था परमपुत्र हनुमान जी को मृत्युदंड
रामायण कथा में यह कहा गया कि जब परम् पुत्र हनुमान जी लंका में रावण के दरवार में जब गए थे तब रावण के सेनापति रावण को सन्देश देते हुए कहा कि “महाराज एक वानर सेना ने अपने बगीचों में तोर-फार आकर रहा है” इतने सुनते ही रावण ने उसको बंदी बनाने के लिए सुनपतियो को भेज दिया, वही दूसरी तरफ प्रभु श्री राम के सामने परम पुत्र हनुमान जी ने अपने शरीर को पर्वत के समान करके कहा, हां मैं खारे पानी के समुद्र को लांघ सकता हू्ं।
लंका पहुंच कर हनुमान जी ने सीता माता से भेट कर कुशलक्षेम बताते हुए धीरज बंधाया कि कुछ दिन और रुकें, प्रभु श्री राम स्वयं ही यहां आकर राक्षसों को मारकर आपको ले जाएंगे। भूख लगने पर हनुमान जी उस बगीचे के फल खाने लगे और रोकने पर वहां के रखवाले राक्षसों को मार डाला तो मेघनाद उन्हें बांध कर लंकाधिपति रावण के दरबार में ले गए। रावण और दरबार के सभी लोगों की राय थी कि यह एक वानर है और इसे मृत्युदंड दिया जाए।
माँ सरस्वती ने पलट दी रावण कि बुद्धि
उसके बाद रावण की इन बातों को सुनते ही विभीषण जी चिंतित हो गए। उन्होंने अपने बड़े भाई रावण से ऐसा करने के लिए मना करते हुए कहा कि दूत को मारना नहीं चाहिए। उसे केवल दंड देकर छोड़ दें। इस पर सारे राक्षसों ने जैसे ही उनकी पूंछ को जलाने की बात कही तो हनुमान जी मन ही मन प्रसन्न हो गए।
गोस्वामी तुलसीदास श्री राम चरित मानस में लिखते हैं,’बचन सुनत कपि मन मुसुकाना, भइ सहाय सारद मैं जाना । जातुधान सुनि रावन बचना, लागे रचैं मूढ़ सोइ रचना।।’ हनुमान जी राक्षसों के इस सुझाव को सुन कर मन ही मन बोले कि इन लोगों को ऐसी बुद्धि देने में सरस्वती जी ने सहायता दी है। साथ ही रावण को भी यह सलाह मानने पर मजबूर कर दिया है। इसके बाद हनुमान जी पूंछ जलाने पर लंका की कैसी गति हुई यह तो सब जानते हैं।
यहां पर रखी गई थी लंका दहन की नींव
सभी वेदों और रामायण कथा के अनुसार, हनुमानजी को ब्रह्मा जी ने वरदान दिया था कि ब्रह्मास्त्र का उन्हें एक मुहूर्त में ही बंधन बना सकता है। इसलिए वह घबराए नहीं। इसको देखते हुए वह ब्रह्मास्त्र में ही बंधे रहे। मेघनाद खुश था। लेकिन हनुमानजी लंका जाना चाहते थे लंका का दहन करने के लिए उन्हें यह अवसर मिला भी। इधर, मेघनाद के सैनिक हनुमानजी को लंका ले गए। और फिर लंका जाकर हनुमानजी ने लंका दहन किया।
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